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लौटना

lautna

उत्पल बैनर्जी

और अधिकउत्पल बैनर्जी

    अभी आता हूँ—कहकर

    हम निकल पड़ते हैं घर से

    हालाँकि अपने लौटने के बारे में

    किसी को ठीक-ठीक पता नहीं होता

    लेकिन लौट सकेंगे की उम्मीद लिए

    हम निकल ही पड़ते हैं

    अक्सर लौटते हुए

    अपने और अपनों के लौट आने का

    होने लगता है विश्वास,

    जैसे—अभी आती हूँ कहकर

    गई हुई नदी

    जंगलों तलहटियों से होती हुई

    फिर लौट आती है सावन में

    लेकिन इस तरह हमेशा कहाँ लौट पाते हैं सब!

    आने का कहकर गए लोग

    हर बार नहीं लौट पाते अपने घर

    कितना आसान होता है उनके लिए

    अभी आता हूँ—कहकर

    हमेशा के लिए चले जाना!

    असल में

    जाते समय—अभी आता हूँ... कहना

    उन्हें दिलासा देना होता है

    जो हर पल इस कशमकश में रहते हैं

    कि शायद इस बार भी हम लौट आएँगे

    कि शायद इस बार हम नहीं लौट पाएँगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उत्पल बैनर्जी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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