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ललमुनियाँ की दुनिया

lalamuniyan ki duniya

दिनेश कुमार शुक्ल

दिनेश कुमार शुक्ल

ललमुनियाँ की दुनिया

दिनेश कुमार शुक्ल

और अधिकदिनेश कुमार शुक्ल

    उलझी-पुलझी झाड़ी लाखों साल पुरानी

    उस पर बैठी ललमुनियाँ थी बड़ी सयानी

    इस टहनी से उस टहनी पर फुदक रही थी

    टहनी में काँटे, काँटों में टीस भरी थी

    लगती थी सूखी झाड़ी पर हरी-भरी थी

    फूल खिले थे फूलों में, मुरझाया था मन

    तौला मैंने फिर-फिर तौला अपने मन को

    लिखा-मिटाया, लिखा-मिटाया फिर जीवन को

    ख़ुद को ठोक बजाया, पत्थर पे दे मारा

    हारी बाज़ी जीती, जीती बाज़ी हारा

    साधा फिर-फिर माया ठगिनी के ठनगन को

    अनदेखे ही आँखें दे दीं इनको उनको

    फिर भी ख़ालिस बचा ले गया मैं बचपन को

    झाड़ी में ललमुनियाँ

    ललमुनियाँ में दुनिया

    दुनिया में जीवन

    जीवन में हँसता बचपन

    बचपन की आँखों के हँसते नील गगन में

    देखा चली जा रही थी उड़ती ललमुनियाँ

    टूटी-फूटी भाषा अगड़म-बगड़म बानी

    ये दुनिया ललमुनियाँ की ही कारस्तानी

    कौआ-कोयल, तोता-मैना की शैतानी

    झूठमूठ की भरो हुँकारी

    झूठमूठ की कथा-कहानी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक पेड़ छतनार (पृष्ठ 64)
    • रचनाकार : दिनेश कुमार शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2017

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