अछोर समय को लादे अपनी पीठ पर
लद्दू घोड़े चर रहे हैं
उनके गले में बँधी घंटियाँ
ज़िरह कर रही हैं आपस में
इतिहास में कहाँ खड़े हैं लद्दू घोड़े
लद्दू घोड़े अपनी पीठ के ज़ख़्म पर बैठी
मक्खियों को भगाने के लिए
पूरी पीठ बरकाते हैं
जिन पीठों को देखकर फिसल जाती हैं आँखें
जिनमें बैठकर मृगया के लिए निकलते हैं राजपुरुष
उन्हीं पीठों का वरण किया है इतिहास ने
लद्दू घोड़े मंथर गति से चलते रहे युगों
पीठ पर लादे स्तूप, शिलालेख, मूर्तियाँ, गुंबद
उन पर लदकर आया पूरा गांधार
उन पर लद कर गई पूरी दिल्ली
अस्तबलों में कहाँ थी उनकी जगह पता नहीं
पर बे-यात्रा के पड़ावों और युद्ध-शिविरों में
सम्राटों से दो दिन पहले मौजूद थे
अपने सैनिकों के लिए लिए हुए रसद
और जीवन-रक्षक औषधियाँ
वे अंत तक मौजूद थे
पर कहीं नहीं थे वे इतिहास में
जबकि किसी भी स्वर्णयुग की कल्पना
बिना ज़ख़्मी पीठों के संभव नहीं
गले में लटकाए चने की थैली
और पीठ पर सोना-चाँदी लादे
बीच यात्रा में
किसी मोड़ पर चूक गए लद्दू घोड़े
इतिहास में दर्ज थे
कूच करने के आदेश
- रचनाकार : हरीशचंद्र पांडे
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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