क्यों होते हो जीवन के प्रति इतने उदास
यह साँसों का व्यापार सहज क्या खोने का।
कोरी भावुकता में बहकर
जो तुच्छ सोचते अपने को
वे कायर हैं
गद्दारी करते अपने प्रति
या यूँ कह लो
वे नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं
जग की सत्ता का एक अंश
तुम तो कायर गद्दार नहीं
क्यों सोच रहे फिर वैसा ही
माना पथ की बाधाएँ तुमको नहीं पनपने देती हैं
अनचाही दुर्गमताएँ आकर
सिसक सिसक चिल्लाती हैं
तुम शक्तिहीन, धनहीन और गतिहीन बन गए हो मन से
पर इससे क्या
माना तुमने कुछ बड़े काम हैं नहीं किए
‘एटमबम'-सा कोई भी गोला नहीं बनाया तुमने है
व्यापार नहीं कोई फैलाया ऐसा है
जिसके बल पर धनपतियों की श्रेणी में नाम लिखा पाओ
‘पी ए' भी नहीं मिनिस्टर के
मैनेजर नहीं किसी मिल के
जाने भी दो
ये सब चीजें ही क्या आवश्यक जीवन में
इनसे हट कर कुछ नहीं रहा क्या जीवन में
बेशक यह सब जीवन को सज्जित करता है
पर उठने की सामर्थ्य कभी भी दे सकता
इसमें मुझको संशय ही है।
छोड़ो इनको
यदि नहीं बन सके इनमें से कुछ भी
तो भी तुम जाने दो।
है यही बहुत क्या कम मुझको
तुम प्यार कर सके जीवन से
अपने से। और दूसरों से।
यह प्यार कि जो मन का संबल
आत्मा का बल
जग का नित नया चिरंतन क्रम
यदि सब कुछ मिट जाए जग में
यह एटमबम
यह धन
यह पद
यह झूठा यश
इन सबके ऊपर सदा चिरंतन अक्षुण्ण जो
यदि सब कुछ मिट जाए जग में
उस स्नेह प्रेम के निर्माता
औ' दाता तुम
क्यों होते हो जीवन के प्रति इतने उदास
इतने हताश?
- पुस्तक : समग्र कविताएँ (पृष्ठ 57)
- रचनाकार : कीर्ति चौधरी
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2010
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