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कुफर

kuphar

पवन चौहान

और अधिकपवन चौहान

    रोचक तथ्य

    कुफर-गाँव का तालाब झाफते-झाड़ना पीछ-चावल पकने के बाद निकलने वाला पानी पाच-साग को पकाते समय साग में डाले जाने वाले चावल

    बहुत अरसे बाद

    लौट आया है फिर से

    गाँव में जीवन

    आज कविता गा रही है

    अपने शब्दों की मिठास

    लोक गीतों में लौट आया है

    एक नया उल्लास

    बंजर ज़मीन पाट लेगी अब

    फैली खाइयों को फिर से

    यक़ीनन।

    दादा देख रहे हैं मुद्दतों बाद

    उस खाली टुकड़े को

    पानी से भरते हुए

    लौट आई है जैसे उनकी

    आँखों की डूबती रोशनी

    पूरे गाँव का चेहरा खिल उठा है

    खुश हैं सभी

    कुफर भर रही है।

    लेकिन

    कुफर के ईंच दर ईंच

    फैलाव को देखकर

    कईयों चेहरे भी उतर आए हैं

    अब वे किस हक़ से जताएँगे

    इस पर अपना कब्जाए।

    वर्षों के बिछड़ी अपनी ज़मीन को

    पा लिया है इन लहरों ने

    बहुत समय बाद

    एक-एक किनारे से

    मिल रही है गले बार-बार

    चेता रही है अतिक्रमणियों को।

    लौट आए हैं

    वर्षों पहले गए पक्षी

    पानी का हर जीव

    इठला रहा है

    कुफर में अब शोर है

    टर-टर, छपाक-छपाक का।

    इस बार ख़ूब होंगे धान

    और धान झाफते समय

    अनायास ही लौट आएगी

    अपने बैलों की स्मृतियाँ

    उस मुश्किल दौर के भी

    मज़ेदार किस्से

    और भी बहुत कुछ...।

    अब मिलेगी

    अपने चावलों की स्वादिष्ट पीछ

    और पाच से लौट आएगा

    साग का असली स्वाद भी।

    कुफर भर गई है

    बारिश के उपजाऊ जल से

    लबालब और भीतर तक भी।

    लेकिन यह क्या

    एक दुःख एक डर

    लौट आया है उसके पास

    वह उछल-उछल कर भी

    नहीं देख पा रही है

    अपना परिवार

    कुफर के पास बैठे लोगों से

    सुन रही है वह...

    सभी कुफरें दफ़ना दी गई हैं

    पार्किंग,अतिक्रमण और

    किसी सरकारी योजना के लपेट

    या फिर उन बीजों के भंवर में

    जो खड़े है सारे पानी में

    एक पूरा जंगल लिए

    कुफर की छाती पर बेगैरत से

    इसी में ही सारे कमल

    कुफर की सारी हलचल दफ़न है।

    कुफर घुट रही है भीतर ही भीतर

    ख़ुद को अकेली देख

    अपने होने का सुख नहीं मना पा रही है

    बेशक, आज वह भरी है लबालब

    हम चाहे जितने मर्ज़ी लोकगीत गा लें

    ख़ुशियाँ मना लें रात-दिन

    लेकिन वह कराह रही है

    उसका रुदन भी कोई सुन रहा है क्या?

    स्रोत :
    • रचनाकार : पवन चौहान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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