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कितना यक़ीन

kitna yaqin

चंद्रेश्वर

चंद्रेश्वर

कितना यक़ीन

चंद्रेश्वर

और अधिकचंद्रेश्वर

    कितना पुख़्ता यक़ीन है विचारक का

    कि एक-न-एक दिन

    अंत होना ही है

    आततायी का

    कि जलेगी ही उसकी

    सोने की लंका

    धू-धू कर

    कितना पुख़्ता यक़ीन है कवि का

    कि एक-न-एक दिन

    सबकी ज़ुबान पर होगी

    उसकी कविता

    कितना पुख़्ता यक़ीन है क़लम का

    कि वह जब भी लिखेगी

    सच ही लिखेगी

    कितना पुख़्ता यक़ीन है एक माँ का

    कि उसकी उम्मीदों पर

    सौ फीसदी खरा उतरेगा

    उसका बेटा

    कितना पुख़्ता यक़ीन है उस स्त्री का

    कि एक-न-एक दिन

    अवश्य ही फूटेगा

    पाप का घड़ा

    जो बढ़ते-बढ़ते

    थोड़ा ही रह गया है

    छोटा

    पृथ्वी से

    कितना पुख़्ता यक़ीन है प्रेमी का

    कि उसे छोड़कर भागेगी नहीं

    उसकी प्रेमिका

    कितना पुख़्ता यक़ीन है सब्जी काटने वाले चाकू का

    जो मौक़ा पाते ही चीर देगा कलेजा

    पापी का

    कहो-कहो नागरिको! कितना पुख़्ता यक़ीन है

    लोकतंत्र में

    अपने मत का

    कि इस बार चुन ही लोगे

    अच्छा नेता

    कि बनेगी ही

    एक अच्छी सरकार!

    स्रोत :
    • रचनाकार : चंद्रेश्वर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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