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कितना अपना

kitna apna

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

दुर्गाचरण षडंगी

दुर्गाचरण षडंगी

कितना अपना

दुर्गाचरण षडंगी

और अधिकदुर्गाचरण षडंगी

    मैं कोई पलायनकर्ता हूँ जो

    प्रेम की यह सुंदर धरती

    छोड़-छाड़ डर से जा छुपूँगा कहीं!

    मैं कोई प्रियजनों का हत्यारा,

    घातक हूँ जो रोज़ पोखर में जाकर

    धोऊँगा अपने हथियार रक्त सने!

    मैं दायी नहीं किसी के अनिष्ट के लिए

    कभी चकित नहीं हुआ किसी का

    देखकर सुख-संसार

    जो दिया किसी ने हँसते हुए

    छाती सहलाकर उसे प्रिय कह

    अनेक ऊष्म चुंबन दिए।

    तुम्हीं बताओ यह पाप है कि

    मुझे प्रायश्चित्त करना होगा किसी दिन

    अयाचित जो मिलता दान

    कुछ नहीं जिसके पास सुदामा की तरह उसे

    इस प्रिय संसार में।

    सोचता होगा वह

    जन्म-जन्म के संचित पुण्य का फल

    जो बहुत कम कष्ट में मिलता मुझे

    संसार में इतने लोग उस सुख की आशा में

    वे क्या मेरी तरह सुख से हैं?

    तुम कितनी सुंदर

    मेरे भले-बुरे

    सुख-दुःख का ध्यान रखती

    मेघनाद प्राचीर में देवी मेरी

    जिसे सुबह-शाम पूजा-अर्चना भोग में

    महिमा स्तव में मैं अपनी बनाता

    जिसकी असीम दया में हँसमुख चेहरा,

    फिर कभी क्रोध-भरा

    मेरे मंगल हेतु कितनी प्रार्थना करती!

    इससे बढ़कर और क्या पाऊँगा?

    तुम्हारी अनुपस्थिति में

    मैं नालायक़ बिसूर -बिसूर ज़रूर मरूँगा॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 281)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : दुर्गाचरण षडंगी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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