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ये दिन और ये पतंग

ye din aur ye patang

शंकरानंद

शंकरानंद

ये दिन और ये पतंग

शंकरानंद

और अधिकशंकरानंद

    इन टूटे हुए धागों में

    पेड़ के सूखे पत्ते

    इस तरह फँस गए हैं कि

    अब उड़ने नहीं देना चाहते

    इनकी पतंग गुम हो गई है

    गुम हो गया है दिन

    आसमान के अंतिम पक्षी की तरह

    भूल चुके हैं ये लौटने के तमाम रास्ते

    जैसे पक्षी तमाम दिशाओं में चक्कर लगाता है

    अपने पंख बंद करता है

    खोलता है रह-रह कर

    किसी तरह बच जाए एक बार

    लौट जाए अपने घोंसले में साबुत आज

    ये दिन और ये पतंग दोनों एक जैसे हैं

    कटने के बाद खोज रहे हैं अपने अपने धागे

    जो फिर से उड़ा दे एक बार

    इससे पहले कि कोई इन्हें लूट ले।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शंकरानंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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