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किसके हिस्से का दुख मेरा दुख है

kiske hisse ka dukh mera dukh hai

महेश आलोक

महेश आलोक

किसके हिस्से का दुख मेरा दुख है

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    किसके हिस्से का दुख मेरा दुख है

    दुख जो कि बहुवचन में दौड़ता है उसका पिछला शरीर

    नदी की सबसे छोटी मछली के आँसुओं में डूबा है और नदी का पानी

    तलहटी में पृथ्वी बन गए दुख के हाथों की अँगूठी

    बनकर चमक रहा है सतह पर जिसे लहरें उछालती हैं

    दुख के अंतरिक्ष में

    मैं चकित हूँ कि इस पूरी प्रक्रिया में

    उस रानी का आगमन कब हुआ

    जिसकी शुभ अँगुली में राजा की ज़िद की तरह वही अँगूठी है

    जो चमक रही थी सतह पर

    राजा ने उसे चूमा और

    राजा की मृत्यु हो गई

    इसे दुख की राजनीति कहना ग़लत नहीं होगा

    दुख चुपचाप मेरे साथ चारपाई पर बैठा

    उतना दुखी नहीं है जितनी मेरी नानी

    नाना की मृत्यु पर हुई थीं

    नानी के दुख में रानी का दुख है

    नाना के हिस्से में राजा का दुख है

    किसके हिस्से का दुख मेरा दुख है

    मोची का तीसरा बेटा जिस दुख में डूबा है

    उस दुख में पहले बेटे की पत्नी का श्वसुर

    बहुत पहले डूब चुका है

    सुना है उसने दादा के लिए इतनी सुंदर चप्पल बनाई

    कि दादी मन ही मन उससे प्रेम करने लगी थीं

    आज भी वह चप्पल बड़े जतन से रखी है

    दादी के दुख में जो

    मेरे सपने का सुख नहीं है

    ईश्वर ने अपनी अँगुलियों में जिस दुख को

    घंटी की तरह बजाया था उसका अनहद नाद

    किसी बाढ़ में बह गए करोड़वें मंदिर की चौखट से चिपका है

    जिसे मंदिर प्रबंधन नीलाम कर रहा है

    मेरे घर की चौखट में उसकी अनुगूँज सुनाई पड़ती है

    जो पहले किसी फ़ौजी की थी

    जो मारा गया किसी मोर्टार से

    मोर्टार बानाने वाली विदेशी कंपनी में

    मेरा बेटा मैनेजर है

    गुरु कबीरदास जी

    किसके हिस्से का दुख मेरा दुख है

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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