किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान
kisi tarah dikhta bhar rahe thoDa sa asman
भगवत रावत
Bhagwat Rawat
किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान
kisi tarah dikhta bhar rahe thoDa sa asman
Bhagwat Rawat
भगवत रावत
और अधिकभगवत रावत
किसी तरह दिखता भर रहे थोड़ा-सा आसमान
तो घर का छोटा-सा कमरा भी बड़ा हो जाता है
न जाने कहाँ-कहाँ से इतनी जगह निकल आती है
कि दो-चार थके-हारे और आसानी से समा जाएँ
भले ही कई बार हाथों-पैरों को उलाँघ कर निकलना पड़े
लेकिन कोई किसी से न टकराए
जब रहता है कमरे के भीतर थोड़ा-सा आसमान
तो कमरे का दिल आसमान हो जाता है
वरना कितना मुश्किल होता है बचा पाना
अपनी कविता भर जान!
- पुस्तक : निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 132)
- रचनाकार : भगवत रावत
- प्रकाशन : इतिहासबोध प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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