मुझे एक किसान पर कविता लिखनी थी
पता नहीं क्यों बार-बार याद आते रहे पिता
देर तक दिखाई देती रही उनकी आसमानी रंग की क़मीज़
यही एक रंग था जिसे उन्होंने जीवन भर पहना
और एक दिन एकसार हो गए आसमान के रंग से
अलगनी पर रखा रह गया उनका पीला अंगोछा चुपचाप।
मुझे एक किसान पर कविता लिखनी थी
और उतर गया स्मृतियों के बीहड़ में
दिखने लगे बचपन की ज़मीन पर बिखरे चुनावी बिल्ले
कांधे पर हल रखा किसान दिखा तो याद आए पिता
जो गाते थे कबीर का निर्गुन पूरे मनोयोग से
बैलों की जोड़ी दिखी तो याद आए अपने बैल
जिनका नाम रखा गया था धौरा और मकना
गाय का दूध पीता बछड़ा दिखा तो याद आई घर गैया की
जिह्वा पर आज तक ठहरी हुई है उसके दूध की मिठास
हंसिया बाली दिखी तो याद आए अपने थोड़े-से खेत
जो निर्भर थे मौसम की मेहरबानी पर
दिखे मंद-मंद मुस्कियाते महाजन महँगू साह भी
जिनके पास गिरवी रखी थी माँ की हँसुली कई साल तक।
मुझे एक किसान पर कविता लिखनी थी
और लिखने लगा अपना अतीत
पाकड़ के बूढ़े पेड़ जैसी शीतल छाँह व्याप्त थी वहाँ
वहीं था कविता के शरण्य का तलघर
जहाँ सहेजकर रखी गई थीं ज़ंग खाई कुदालें और खुर्पियाँ
धरती को कोड़कर भोथरे हो चुके हल के फाल
बाँस की लगभग टूट चुकीं टोकरियाँ छोटी बड़ी
कुछ रंगीन घड़े जिनमें अब भी बचा था कुएँ का जल
इतना सब पर्याप्त था कविता के आगमन के लिए
अमूल्य थे ये सारे उपादान।
मैं मुग्ध होता रहा कल्पना और यथार्थ के विलयन पर
अपने ही आईने में देखता रहा मनमाफ़िक छवियाँ बार-बार
बचता रहा कपास के खेतों के सफ़ेद उदास रंग से
टी.वी. पर दिखी अकाल की तस्वीर तो बदल दिया चैनल चतुराई से
अख़बारों की सुर्ख़ियों को कनखियों से देखा भर
और लिखता रहा कविताएँ भी लगभग रोज़ ही
जैसे कि यह भी कोई काम हो दिनचर्या का।
मुझे एक किसान पर कविता लिखनी थी
और वह अब भी बाक़ी है
इफ़रात में इतने सारे शब्द ख़र्च करने के बावजूद।
- रचनाकार : सिद्धेश्वर सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.