खींचती है मुझे अपनी ओर कू-कू की आवाज़-तीन
khinchti hai mujhe apni or ku ku ki avaz teen
लक्ष्मीकांत मुकुल
Laxmikant Mukul
खींचती है मुझे अपनी ओर कू-कू की आवाज़-तीन
khinchti hai mujhe apni or ku ku ki avaz teen
Laxmikant Mukul
लक्ष्मीकांत मुकुल
और अधिकलक्ष्मीकांत मुकुल
मेरे आज़ू-बाज़ू के भग्न गृहों पर
चहकती है कोकिल बयनी
बरसों से सुनाती हुई आदिम राग़
नहीं लौटे वे लोग फिर कभी
जो गए थे गाँव छोड़कर
शहरों की चमकती दुनिया में
उन भ्रंसित घरों में बिल्लियों-नेवलों ने
बसा लिया है अपना बसेरा
उस पर उगे चिल-बिल के पेड़ पर
हर शाम होता है कर्कश कौवागादह
टिटिहरियों के झुँड टी-टी करते हुए
बढ़ाते हैं उधर पसरे हुए अनवरत सन्नाटे
कू-कू करती हुई कोयल
याद दिलाती है विगत ज़माने के क़िस्से
जब वन फूलों की तरह सर्वदा
खिल-खिलाते रहते थे उजाड़ होते जा रहे हैं ये गाँव!
- रचनाकार : लक्ष्मीकांत मुकुल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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