मैं भेड़ों को कविता सुना रहा था
और भेड़े घास के लिए परेशान थीं
चरवाहे इस फ़िराक़ में थे कि कब गोष्ठी ख़त्म हो
और वे उनका ऊन उतार सकें
अपनी छुरियाँ वे पहले से ही पहट चुके थे
मेरी परेशानी यह थी
कि मैं उन्हें अच्छे श्रोताओं में बदलना चाहता था
मैं उन्हें उन हत्यारों के बारे में बताना चाहता था
जो उनके लिए हर साल क़त्लगाह बनाने का काम करते हैं
मैं कोई जादूगर नहीं कवि था
मेरे लिए यह सोचना बेमानी नहीं था
कि भले ही कुछ न बदले
बदलने की कोशिश कभी बेकार नहीं जाती
भेड़ों की सभा में भेड़ें अपने खुर से
अपने कान खुजा रही थीं
कुछ कविता सुनने के बजाए मिमियाँ रही थीं
चरवाहों ने कहा—आप कुछ भी कर लें
भेड़ें कविता सुनने के विरुद्ध हैं
उन्हें घास का बहुत बड़ा मैदान और मुझे ऊन चाहिए
जिससे मैं लोगों को ठंड से बचा सकूँ
पहली बार मुझे लगा कि भेड़ों को कविता सुनाना कठिन काम है
लेकिन मैं इस कोशिश में लगा हुआ हूँ
कि बेशक भेड़ें दुनिया की स्वादिष्ट घास खाएँ
लेकिन मेरी कविता ज़रूर सुन लें
- रचनाकार : स्वप्निल श्रीवास्तव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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