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कविता की अंतिम पंक्ति

kawita ki antim pankti

संतोष कुमार चतुर्वेदी

संतोष कुमार चतुर्वेदी

कविता की अंतिम पंक्ति

संतोष कुमार चतुर्वेदी

और अधिकसंतोष कुमार चतुर्वेदी

    तमाम झंझावातों से होकर सकुशल घर लौट आने की ख़ुशी

    या फिर फ़सल के सकुशल घर लौट आने का सालाना उल्लास

    दोनों के अक्स देखे जा सकते हैं इसमें

    यह ख़ामोशी का पर्याय नहीं

    बल्कि कविता की अंतिम पंक्ति है

    कई बार इसी से खुलते हैं

    कविता के रहस्यमयी और गोपन से लगते दरवाज़े

    आमतौर पर इसमें एक अंत जैसा वह चेहरा दिखता है

    जिसके मन में तमाम चिंगारियाँ सुलग रही होती हैं

    यहाँ आते-आते एक मौन-सा छा जाता है

    वही मौन जिसमें तमाम प्रश्न कुलबुला रहे होते हैं

    वही मौन जो बुलबुलों के फूटने जैसी ध्वनि लिए रहता है अपने में

    इधर तौर-तरीक़े बदल गए हैं इसके

    निष्कर्ष के तौर पर नहीं आती

    बल्कि अब अक्सर तमाम सवालात उठाते हुए आती है

    इसमें महानगर के भीड़ भरे इलाक़ों से इतर

    गाँवों के वे नक़्शे हैं

    जो नई पीढ़ी की धमक से लगातार आभारहित होते जा रहे हैं

    इसमें सीमांत पर बस रही बस्तियों की अकुलाहट है

    जिसे अभी अपना एक पता हासिल करना है

    इसमें नए-नवेले शिशु सरीखी अकुलाहट है

    जिसे बहुत कुछ जानना-सीखना है

    इसमें स्वाद की अपरंपार गुंजाइशें हैं

    जिसके बारे में बता सकते हैं अभी फ़िलहाल गुणीजन ही

    इसमें घोसले की तरफ़ तमाम उम्मीदें लिए वापस लौटती चिड़ियों की अनुगूँज है

    वैसे कई बार महारथियों तक को छका डालती है यह

    वैसे कई बार मन में होते हुए भी ज़ुबाँ तक नहीं आती

    कई बार तो ऐसा हुआ कि झल्लाहट में कवि ने जहाँ की तहाँ छोड़ दिया लिखना

    और अधूरी-सी दिखने वाली पंक्ति ही बन गई कविता की अंतिम पंक्ति

    ये पलाश के उस फूल की तरह है

    जो निचाट पतझड़-उजाड़ मौसम में महकता नहीं

    सीधे-सीधे लहक उठता है

    निहार कर देखो

    इसका चेहरा समाज के ठीक उस अंतिम आदमी से बहुत मिलता-जुलता है

    जिसमें बहुत कुछ कह जाने के भाव हैं

    लेकिन इसे सुनने के लिए किसी के पास वक़्त ही नहीं है

    स्रोत :
    • रचनाकार : संतोष कुमार चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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