एक
एक बिखरा हुआ दिल ख़ून को बहता हुआ देखकर आईने में—
आईने में से निकलकर युद्ध चाहता था
आईने से बाहर ख़ून देखकर—
बाहर से वापस अपने में लौट आना चाहता था
जिस शहर वो लौटकर आया—
शहर बदल चुका था
एक पेड़ के नीचे उसे आने वाले पूरे चालीस साल की भूख एक साथ लगी
उसने आईने को तोड़ दिया
ख़ून आईना भूख युद्ध चालीस साल का बचपन था
बचपन की हँसी में अट्टहास था जिसमें कि
उसे आईने मैं ख़ून का मटमैला धब्बा दिखता था।
दो
एक खिलौना था जो उसकी नानी की कहानी के शैतान से मिलता-जुलता था
उसने शैतान के दो टुकड़े किए-एक पहाड़ों पर—दूसरा समुद्र में फेंक दिया—की स्मृति उसे अख़बार में छपे लाशों के ढेर के ऊपर बैठी दिखाई दी
और उसने खिड़की को इतने तेज़ धमाके के साथ खोला कि पार दिख रहे आसमान को दीवार समझ उससे टकरा गया
स्मृति में युद्ध वह अपने साथ लिए लिए टकराता रहता था।
तीन
भोर का पहला पक्षी
भोर का अंतिम तारा
भोर की पहली ख़ुशबू
भोर की पहली थकान
भोर में भोर की पहली मृत्यु आदतन थी।
चार
वह अपने बाल सँवारकर गर्म कानों के साथ सड़क पर दौड़ता जाता था
वह उसके घर के आगे रुक कर रोने लगा
वह तुम्हें चाहता था या नहीं पता नहीं, नहीं जानता ऐसा होना किसे कहते हैं मेरे पास भाषा ही नहीं थी यह सब समझकर बताने के लिए
वह तुम्हें देखता था तो एक पेड़ याद आता था
बाद में यह बात भी बचकानी लगती थी, क्योंकि अक्सर मैं अकेले में पेड़ को नहीं तुम्हारा स्पर्श याद करना चाहता था
पर वह तुम्हारे मन में कैसा दिखता था यह मुझे कभी पता नहीं चला
देखो वह पता नहीं तुम्हारे घर के आगे खड़ा होकर क्यों रोता था पता नहीं।
पाँच
सिर को आरा मशीन में रखकर काटा जा रहा था
एक पल में वह वहाँ लाशें बिछा देना चाहता था
जो चीख़ उस समय नहीं चीख सका अब वह उसके अंदर काले
धब्बे बना चुकने के बाद सूख चुकी है और अब वह अपना कठोर-सा चेहरा लिए धूप देखता रहता है
अपनी खोई भाषा के शोक के साथ
इतने सालों बाद उसे ऐसा ही दिखना था—ऐसे वाक्य-विन्यासों के साथ अपने पुराने फ़ोटो एलबम से निकलकर—
अपने युद्धों की तस्वीरें पत्रिकाओं में देखा करता था।
छह
वे सब मृत्यु को प्राप्त हुए आइस-पाइस खेलते हुए
ऐसे छिपे कि ढूँढ़ता हुआ पहुँचा तो वहाँ उनकी चिता लगी थी
और जलती चिता की तस्वीर कोई घरों मे नहीं लगाते थे
न ही इस शक्ल में उन्हें याद करते थे।
- रचनाकार : शिव कुमार गांधी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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