कविता से भूख नहीं मिटती
kavita se bhookh nahin mitti
मैंने भूख मिटाने हेतु कविताएँ लिखी
पर कविताओं से भूख नहीं मिटती
मिटता है तो आदमी रफ़ काग़ज़
पर पेट रफ़ू करता हुआ
मैंने काग़ज़ फाड़ा,निगला,रोया
गोया ताराचंद रोया बेटा बेचने के बाद
तोते रोये बाग में दीमक लगने के बाद
खेत रोये फसल जलने के बाद
नहरें रोई नदी सूखने के बाद
डौळी खेंचता हुआ अवसाद
क़स्सी धरती के सीने पर नहीं
ख़ुद के सीने पर चलाता है
जलाता है बाँझ हुए अमरुद संग बड़ा हुआ तन
जिसे अब चूल्हे में नहीं गैस में जलना है
लड़ना है स्वप्न में आन खड़े धोळे कपाड़ियों संग मल-युद्ध
लगाकर कलागंज गोता मारकर तरना है
रजबाहे की गहराई में
जिसके स्तनों का दूध चोरी कर
धरती को गोद में बिठा पिलाया है
खिलाया है हर वो क्षण जिसमें जवानी
वेंटिलेटर पर पड़ी सुबक रही थी
मैं कविता ले जा पहुँचा उस आदमी के पास
मैनें कविता दी
उसने जवानी माँगी
जवानी देनी होगी
क्योंकि कविता से भूख नहीं मिटती
ना तन की ना मन की
मिटता है तो आदमी
रफ़ काग़ज़ पर पेट रफ़ू करता हुआ
- रचनाकार : हिमांशु जमदग्नि
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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