जब प्रणय-दीप आँखों में हो
मकरंद लुटाती कलियाँ हों,
नित अवनत पथ को उकसाती
दिशाभ्रमित सब गलियाँ हों,
जिस पल खोया हो सकल जगत
अवचेतन जग के क्रंदन में,
होता हो दिनकर नतमस्तक
हत! घोर तिमिर अभिनंदन में,
मन कानन हो, उद्दीप्त अहा!
सुन प्रणय मृदुल अनुराग कथा,
तब कौन सुनेगा कह प्रियतम!
बुझते दीपक की हार-व्यथा?
जब राग-रागिनी हो पुलकित
नित मृदुल सुधा बरसाते हों
मृदुल मलय के झोंके कोमल
नव किसलय को भरमाते हों,
स्वप्न मिलन के भर आँखों में
उन्माद जगाती मधुबाला,
हो मादकता से ओत-प्रोत
जग लगता विस्तृत मधुशाला,
जब मुक्त प्रशंसा पाती हो
अघ! योगी की व्यभिचार कथा।
तब कौन सुनेगा, कह प्रियतम!
टूटे वीणा की तार-व्यथा?
जब राग-द्वेष उर बसता हो
किंचित मन में संताप न हो
विश्वास स्वजन का हरने में
जब उर में कुछ अनुताप न हो,
मान स्वयं को जगत विजेता
मुस्काते गर्वित तंद्रा में
हो आत्ममुग्ध जब वास करे
खल नित अँधियारी कंदरा में
अविराम सुनाते जब हुलसित
मिथ्या पौरुष की स्वार्थ-कथा
तब कौन सुनेगा, कह प्रियतम!
मेरे जीवन की सार-व्यथा?
- रचनाकार : निधि अग्रवाल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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