एक
वह मछली जिसके पेट में राजा की अँगूठी है
और वह ज़िंदा है हज़ारों साल से कविता में
चलो उससे पूछें
कालिदास की कविता के बारे में
शायद वह कंबल जो बरस रहा है
और भिंगो रहा है पानी को बरसों से
चलो उससे पूछें
कबीर की कविता के बारे में
मधुमक्खियाँ ज़रूर पढ़ती होंगी कविताएँ
वे तो कविता की पैदाइश के साथ ही घोल रही हैं मिठास
चलो उनसे पूछें
इस कठिन समय में
कितने दिन और जीवित रहेंगे सूरदास
बादल, चिड़िया, सूरज और चंद्रमा इत्यादि
जो कच्चे-पके फल की तरह लटक रहे हैं कविता में
और मज़े लेते हैं हर कविता समय में
ज़रूर पढ़ते होंगे कविताएँ
आख़िर अपनी दशा-दुर्दशा पर टिप्पणी
करने का अधिकार उन्हें भी है
पूछें तुलसी और निराला के यहाँ उनका स्वाद
अगले हज़ार सालों तक वही रहेगा
जो आज है
और सचमुच
कितने किलोमीटर की दूरी पर है
अज्ञेय और मुक्तिबोध का घर
दो
रिक्शेवाले और दूधवाले नहीं पढ़ते कविताएँ
जैसे मछली पर लिखी कविताएँ मछली नहीं पढ़ती
मछुआरे कविताएँ पढ़कर नहीं मारते मछलियाँ
मुझे शक है शिक्षक भी पढ़ते हैं कविताएँ
अपने जन्म से बीस साल पहले पैदा हुए कवि को
पाठ्य-पुस्तक के सिवा कहाँ देखा है उन्होंने
कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री क्यों पढ़ेगा कविताएँ
ग़लती से भी भेंट नहीं की किसी ने कोई कविता-पुस्तक
किसी राष्ट्राध्यक्ष को आज तक
हालाँकि यह भी सच है
एक अच्छी कविता ज़्यादा ताक़तवर है
किसी बहुमत वाली
सरकार से
- रचनाकार : महेश आलोक
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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