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कथरी

kathri

जुमई खाँ 'आजाद'

और अधिकजुमई खाँ 'आजाद'

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    लोटइँ लरिका सयान सारा परिवार बेचारा कथरी मा

    एतनी अनमोल अहा कथरी मोल बिकानू हटिया मा

    मुल तोहका देखा घरे-घरे सब जने बिछाये खटिया मा

    तोहरी गोदिया मा लोटि-पोटि हम खेलि कूद बलवान भये

    हमरे पुरखै तोहरे बल पर गाँधी, गौतम भगवान भये

    तुलसी कबीर जायसी सूर सब रहे दबाये कखरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    जेस फुलवइ कुरबानी कयिके आपन देहियाँ नथवाइ देयँ

    दुसरी की गटई की खातिर आपन गटई लटकाइ देयँ

    वइसे तू हमरे बरे फुरइ सुइया डोरवा से प्यार किहू

    मन मरा नहीं तन छेदि उठा खुब दीनन कै उपकार किहू

    बस यही से महिमा बढ़ति अहै कथरी तोहार यहि नगरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    तू बिपति कै साथी अहा पूर आराम तुहीं पहुँचावा थू

    भूखे नंगे लरिकन का अपने गोदिया तुहीं सोवावा थू

    साहस तोहरे अन्दर एतना बदमास चोर केउ पूछै ना

    लुटि जाइ खजाना माल भले मुल तोहका केहुवै लूटै ना

    राना के सथवा गजब रहिउ तू जंगल वाली कोठरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    भिलनी की कुटिया कै सोभा बन बीचे कबौ बढ़ाइव तू

    अपनी गोदिया भगवान राम का जूठे बैर खिलाइव तू

    दिन रात सुदामा के सथवा मड़ई मै किहिउ तपस्या तू

    सथवा मा गयिउ द्वारिकापुर सारी बिदुर घर पतरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    मक्के से गयिउ मदीना तू उपदेस सुनइ पैगम्बर कै

    दुनिया मा एक अहै ईस्वर जरि खोदिउ तू आडम्बर कै

    ईसा मूसा दर-दर भचके मुल सथवा-सथवा लगी रहिउ

    उनकर उपदेस सुनावइ का तू अगवा-अगवा भगी रहिउ

    अम्बिया औलिया अपनायेन मन रमा रहा खुब गुदरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    तू लाल बहादुर की सेवा कइके दिल्ली पहुँचाइ दिहिउ

    गुदरिउ मा लाल छिपे केतने तू दुनिया का दिखलाइ दिहिउ

    अब्दुल हमीद का सबक तुहीं कुर्बानी वाला देहे रहिउ

    का तोहरे सुधि नाहीं बाटै जब अपनी गोदिया लेहे रहिउ

    ओनकर माई जब दरति रहीं दलिया घर वाली चकरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    एतना गुन तोहरे भरा अहै तब काहे ना दुनिया पूछै

    काहे घर कै बहुअरियइ दिन राति तुहैं झारैं पोछैं

    पुरखातन से हमरेव घर खुब किरपा तोहरी बनी अहै

    सँझवा की तोहरे बरे रोज खुब छीमा-झपटी ठनी अहै

    कुछ दिनै रहे से दुलहिनियै लइके भागैं अँधकोपरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

    समता समाज की सेवा मा आपन जीवन तू दान दिहिउ

    बैठाइव बगल गरीबन का तिनकाउ तू अपमान किहिउ

    दुखिया मजूर की नइया कै बस असिल खेवइया तुहीं अहिउ

    ‘आजाद’ कहैं भवसागर से वहि पार लगइया तुहीं अहिउ

    जब छोड़ि चला संसार दीन तब साथ बँधिउ तू ठटरी मा

    कथरी तोहार गुन जानै जे करै गुजारा कथरी मा

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