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कथावाचिका

kathavachika

अमर दलपुरा

अमर दलपुरा

कथावाचिका

अमर दलपुरा

और अधिकअमर दलपुरा

    सड़क पर चलती हुई

    या कुछ बड़बड़ाती हुई

    एक पागल स्त्री रोज़ मिलती है

    जैसे सड़क ही उसका घर है

    और आसमान उसकी छत

    मैं भी पागलों की तरह देखता उसे

    उसके शब्दों को समझने की कोशिश में

    रोज़ ओझल हो जाती है

    कभी-कभी लगता है

    मेरे जैसे पुरुष को दे रही होगी गाली

    या कोसती होगी इस समाज को

    जहाँ बलात्कार की हद तक चले जाते हैं

    स्त्रियों को पागल कर देते हैं

    मैंने पहली बार उसे विशाल पंडाल में देखा

    जहाँ कथावाचिका

    शांति और ख़ुशी का रहस्य समझा रही थी

    और पागल स्त्री ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी

    मुझे भी बैठने के लिए कुर्सी दो

    कथावाचिका का चेहरा

    अशांति से क्रूर हो गया

    उसे बाहर निकालने का आदेश दिया

    स्रोत :
    • रचनाकार : अमर दलपुरा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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