Font by Mehr Nastaliq Web

नित्यता

nityata

अनादिकाल से जल रहा हूँ मैं

और अभी तक जलता जा रहा हूँ

अनंतकाल तक है जलते रहना यह नियति मेरी

अनादिकाल का यह प्रशस्ति गीत

बजता रहेगा मेरे लिए

बजता रहे

जले

मैं जल रहा हूँ

यह मेरी नियति है

पात्रों में

भरी जब उसने शीशों में मदिरा

तभी मदमस्त निद्रा ने

मुझे किया ग्रस्त

मैं धता बताकर उसे भाग जो गया

अनजाने में

अभी तक जलता ही जा रहा हूँ

अनादिकाल का प्रशस्ति गीत

गूँजता रहे मेरे लिए

मुझे बदा है अनंतकाल तक जलते रहना।

स्रोत :
  • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 136)
  • संपादक : रतनलाल शांत
  • रचनाकार : ग़ुलाम मुहीउद्दीन गौहर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2005

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY