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ज्ञान

gyan

अनुवाद : प्रेमनाथ दर

ज्ञान के उद्गम से फूटे वह प्रकाश कि अंधी आँख को दिख जाए

ज्ञान के उद्गम से फूटे वह प्रकाश कि अंधी आँख को दिख जाए

जलती रहे जलती रहे यह ज्योति जिससे सत्य का परिचय हो जाए

ज्ञान से तिमिर कटे और धीरे-धीरे संसार,

जग जाए और देखेगा तेरा पूर्ण प्रकाश

ज्ञान के उद्गम से...

ज्ञान के उद्गम से फूटे वह प्रकाश कि सबकी परख हो जाए

ज्ञान से अंश-अंश का भेद पाऊँ

ज्ञान से फिर अपने-आपको भी पहचानूँ

ज्ञान से ही ज्ञानी से भी ले-ले जेबें भर दूँ,

ज्ञान अस्त्र ही से अज्ञानी का अज्ञान काट दूँ

ज्ञान के उद्गम से...

ज्ञान के उद्गम से फूटे वह प्रकाश कि एक ही से अनेक निकालूँ

ज्ञान से पिंड ही में ब्रह्मांड को भी देख पाऊँ

ज्ञान से मानव का स्थान भी स्पष्ट कर पाऊँ

ज्ञान ही से आत्मा के ऐक्य का भी पता लगाऊँ,

इस पते से भेद सब फिर ऐक्य के सबको बताऊँ

ज्ञान के उद्गम से...

ज्ञान का उद्गम फूटे जब पर्वत तोडूँ, शशि को पकडूँ

ज्ञान से पर्वत तोडूँ, ज्ञान से शशि को पकड़ूँ,

ज्ञान से परखूँ बिजली तूफ़ान,

ज्ञान से जल को वायु को वश में कर लूँ,

ज्ञान से खोजूँगा यह आकाश।

ज्ञान के उद्गम से...

ज्ञान का उद्गम फूटे, जब दिलों को निचोड़ूँगा,

ज्ञान से इक रेत के कण का हृदय निचोड़ूँगा,

इस हृदय से भावनाएँ और एक उत्साह निकालूँगा

ज्ञान से ही अणु में से शक्ति वही निकालूँगा,

जिससे काफ़ पर्वत को भी खस खस-सा बना सकूँगा

ज्ञान के उद्गम से...

ज्ञान का उद्गम फूटे तब ऊँचे महल बनाऊँगा

ज्ञान से ऊँचाई पै अपना घर बनाऊँगा,

फिर ज्ञान-पथ पै खोजता ढूँढ़ निकालूँगा नए संसार

ज्ञान की ऊँची उड़ानों में जाऊँगा इस आकाश से आगे,

आगे-आगे उड़ता, खोलता जाएगा पंख, मेरा पक्षिराज,

ज्ञान के उद्गम से...

ज्ञान का उद्गम फूटेगा जब लोगों को ले उतारूँगा पार,

ज्ञान (रूपी नाव) से ले उतारूँगा लोगों को इस सागर से पार

ज्ञान (रूपी पतवार) से खे लूँगा तट तक राष्ट्र की यह नाव

ज्ञान के डाँड से ही क्षण-क्षण में नाव को उचित

दिशा की ओर चलाऊँ

और निरंतर दृढ़ रहेगी आशा मेरी कि नाव जोख़म

से बचती ही रहेगी।

ज्ञान के उद्गम से...

ज्ञान का फूटेगा उद्गम, अग्नि को मैं फाँद लूँगा,

ज्ञान से हे फ़ाज़िल अग्नि को भी फाँद सकूँगा मैं,

और ऐसा करते भी मुझको लगेगा पैर के नीचे है पुष्पों का ढेर

ज्ञान से भाँति-भाँति की दुकानों पै जाकर हर कसौटी पै

घिस जाऊँगा

और सब सुनारों को दूँगा पास सोने की चाश

ज्ञान के उद्गम से...

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 189)
  • रचनाकार : ग़ुलाम अहमद फ़ाज़िल
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 1956

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