कारन सों गोरन की घिन को
karan son goran ki ghin ko
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
Badrinarayan Chaudhary 'Premghan'
कारन सों गोरन की घिन को
karan son goran ki ghin ko
Badrinarayan Chaudhary 'Premghan'
बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
और अधिकबदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
रोचक तथ्य
दादाभाई नौरोजी के पार्लियामेंट के मेंबर होने के अवसर पर सन् 1892 में विरचित।
कारन सों गोरन की घिन को नाहिन कारन।
कारन तुम हीं या कलंक के करन निवारन॥
कारन ही के कारन गोरन लहत बडाई।
कारन ही के कारन गोरन की प्रभुताई॥
कार नहीं है कारन को गोरन गोरन में।
कारन पै जिय देन चहत गोरन हित मन में॥
कारन का है गोरन में भगती साँचे चित।
कारन की गोरन ही सो आशा हित की नित॥
कारन की गोरन की राजसभा में आवन।
को कारन केवल कहि कै निज दुख प्रगटावन॥
कारन करन नहीं शासन गोरन पै मन में।
कारन के तौ का कारन घिन जो कारन में॥
गोरन की जो कहत नकारन कारन रोकौ।
नहिं बैठे ए गोरन मध्य कहूँ अवलोकौ॥
महामंत्री को बचन मेटि तुमही बिन कारन।
गोरन राजसभा में कारन के बैठारन॥
के कारन तुम अहौ, अहो प्रिय साँचे लिबरल।
कारन के अब तौ तुमहीं कारन कारन बल॥
कारो निपट नकारो नाम लगत भारतियन।
यदपि न कारे तऊ भागि कार बिचारि मन॥
अचरज होत तुमहुँ सन गोरे बाजत कारे।
तासों कारे-कारे शब्दहु पर है वारे॥
अरु बहुधा कारन के है आधारहि कारे।
विष्णु कृष्ण कारे कारे सेसहु जगधारे॥
कारे काम, राम, जलधर जल बरसनवार।
कारे लागत, ताही सन कारन को प्यारे॥
तासो कारे ह्वै तुम लागत औरहु प्यारे।
यातैं नीको है तुम कारे जाहु पुकारे॥
यहै असीस देत तुम कहैं मिल हम सब कारे।
सफल होहिं मन के सब ही संकल्प तुमारे॥
वे कारे घन से कारे जसुदा के बारे।
कारे मुनिजन के मन में नित विहरन हारे॥
मंगल करै सदा भारत को सहित तुमारे।
सकल अमंगल मेटि रहैं आनंद बिस्तारे॥
- पुस्तक : कविता-कौमुदी, दूसरा भाग-हिंदी (पृष्ठ 40)
- संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
- रचनाकार : बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
- प्रकाशन : हिंदी-मंदिर, प्रयाग
- संस्करण : 1996
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