कलकत्ता की एक ट्राम में एक मधुबनी पेंटिंग
kalkatta ki ek tram mein ek madhubni penting
ज्ञानेंद्रपति
Gyanendrapati
कलकत्ता की एक ट्राम में एक मधुबनी पेंटिंग
kalkatta ki ek tram mein ek madhubni penting
Gyanendrapati
ज्ञानेंद्रपति
और अधिकज्ञानेंद्रपति
अपनी कटोरियों के रंग उँड़ेलते
शहर आए हैं ये गाँव के फूल
धीर पदों से शहर आई है
सुदूर मिथिला की सिया सुकुमारी
हाथ वाटिका में सखियों संग गूँथा
वरमाल
जानकी!
पहचान गया तुम्हें मैं
यहाँ इस दस बजे की भभकभीड़ में
अपनी बाँहें अपनी जेबें सँभालता
पहचान गया तुम्हें मैं कि जैसे मेरे गाँव की बिटिया
आँगन से निकल
पार कर नदी-नगर
आई इस महानगर में
रोज़ी-रोटी के महासमर में
- पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 23)
- संपादक : कुमार मंगलम
- रचनाकार : ज्ञानेंद्रपति
- प्रकाशन : राजकमल पैपरबैक्स
- संस्करण : 2022
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