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कई महीन धागों से बंधा है

kai mahin dhagon se bandha hai

सुधा उपाध्याय

सुधा उपाध्याय

कई महीन धागों से बंधा है

सुधा उपाध्याय

और अधिकसुधा उपाध्याय

    जीवन

    बचपन, संस्कार, परिवर्तन, परिपक्वता

    और इन सबसे कहीं बढ़कर

    ख़ुद को टटोलने की अदम्य इच्छा

    जब-जब खोजने निकलती है

    वह ख़ुद को

    बार-बार उलझती है उन्हीं धागों में

    बेटी, बहन, पत्नी और माँ के

    महीन धागे आपस में उलझे हैं

    सुलझाने की कोशिश में

    टूटने लगते हैं

    क्या कभी वह खोज पाएगी

    उस औरत को

    जो इन बंधनों से अलग है

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुधा उपाध्याय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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