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मैं जब तक आर्ई बाहर

main jab tak ari bahar

गगन गिल

गगन गिल

मैं जब तक आर्ई बाहर

गगन गिल

मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने

बदल चुका था

रंग दुनिया का

अर्थ भाषा का

मंत्र और जप का

ध्यान और प्रार्थना का

कोई बंद कर गया था

बाहर से

देवताओं की कोठरियाँ

अब वे खुलने में आती थीं

ताले पड़े थे तमाम शहर के

दिलों पर

होंठों पर

आँखें ढँक चुकी थीं

नामालूम झिल्लियों से

सुनाई कुछ पड़ता था

मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने

रंग हो चुका था लाल

आसमान का

यह कोई युद्ध का मैदान था

चले जा रही थी

जिसमें मैं

लाल रोशनी में

शाम में

मैं इतनी देर में आई बाहर

कि योद्धा हो चुके थे

अदृश्य

शहीद

युद्ध भी हो चुका था

अदृश्य

हालाँकि

लड़ा जा रहा था

अब भी

सब ओर

कहाँ पड़ रहा था

मेरा पैर

चीख़ आती थी

किधर से

पता कुछ चलता था

मैं जब तक आई बाहर

ख़ाली हो चुके थे मेरे हाथ

कहीं पट्टी

मरहम

सिर्फ़ एक मंत्र मेरे पास था

वही अब तक याद था

किसी ने मुझे

वह दिया था

मैंने ख़ुद ही

खोज निकाला था उसे

एक दिन

अपने कंठ की गूँ-गूँ में से

चाहिए थी बस मुझे

तिनका भर कुशा

जुड़े हुए मेरे हाथ

ध्यान

प्रार्थना

सर्वम शांति के लिए

मंत्र का अर्थ मगर अब

वही था

मंत्र किसी काम का था

मैं जब तक आई बाहर

एकांत से अपने

बदल चुका था मर्म

भाषा का

स्रोत :
  • पुस्तक : मैं जब तकआई बाहर (पृष्ठ 151)
  • रचनाकार : गगन गिल
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2018

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