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जीवनी

jiwani

मुझ तीन आयामवाले आदमी में

भर गई रोशनी—आँख में, नाक में, मुँह में

बहते-बहते कहाँ लगा, किस युग में

सूरजप्रसाद कहाँ हो, मलाईबर्फ़वाले

रोशनलाल कहाँ हो, तरबूजवाले

किरनमई आवाज़ दो, पानवाली

कोई नहीं... कोई नहीं...

खो गई दुनिया मेरी

इस चिलचिलाती जून की लहराती धूप में

बारजे पर खड़ी एक प्रिया दिखी

दूर से आते जहाज़ के मस्तूल-सी

दो आयामवाली मछली-सा

मैं जाकर टकरा गया

मकान की दीवार से

अंग-अंग टूट गया

किनारे लगा फ़क़ीर-सा

बना हुआ लकीर का

चल पड़ा एक ओर

धरती को लपेटकर आया हूँ

सच मानो सूरज, रोशन, किरन

इसीलिए लगता हूँ

चुका हुआ बिंदु-सा!

नहीं तो मैं भी था...

स्रोत :
  • पुस्तक : नंगे पैर (पृष्ठ 28)
  • रचनाकार : विपिन कुमार अग्रवाल
  • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
  • संस्करण : 1970

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