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झूठे सपने

jhuthe sapne

राकेश कबीर

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झूठे सपने

राकेश कबीर

और अधिकराकेश कबीर

    घर से भागे हुए लोग और

    भागे हुए लोग

    पूरी दुनिया में घूम-घूम के

    बेचते हैं सपने

    ये दुनिया बावरी

    आँखें मूँदे ख़रीदती भी है सपने

    पगली इतना भी नहीं जानती कि

    दूसरों के दिखाए हुए सपने

    बहकाए हुए वादे

    झूठे होते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुँवरवर्ती कैसे बहे (पृष्ठ 67)
    • रचनाकार : राकेश कबीर
    • प्रकाशन : ज्ञान गंगा, दिल्ली

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