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जंगल का गीत

jangal ka geet

रमेश रंजक

रमेश रंजक

जंगल का गीत

रमेश रंजक

और अधिकरमेश रंजक

    बचकर कहाँ चलेगा पगले, चारों ओर मचान है

    हर मचान पर एक, आँखों में शैतान है!

    हवा धूल में बटमारीपन, छाया की तासीर गर्म

    सरमायेदारों के कपड़े पहने घूम रहा मौसम

    नदी नालों की ज़ंजीरें हरियल टहनोदार नियम

    न्यायाधीश पहाड़ मौन है, खा-पीकर रिश्वती रकम

    सत्ता के जंगल की पत्ती-पत्ती बेईमान है!

    चारों ओर अँधेरा गहरा, पहरा है संगीन का

    महँगाई ने हाँका मारा, बजा कनस्तर टीन का

    जिनको पाँव मिले वे भागे, पंजा पड़ा मशीन का

    जहाँ बचाएँ प्राण, नहीं रे! टुकड़ा मिला ज़मीन का

    कहाँ छुपाएँ अंडे-बच्चे हर प्राणी हैरान है!

    पहले पूरब फिर पच्छिम में, गोली चली मचान से

    दक्खिन थर-थर कांपा, उत्तर चीख़ पड़ा जी-जान से

    सिसकी लेकर मध्यम धरती, बोली दबी ज़ुबान से

    राम बचाए, राम बचाए ऐसे हिंदुस्तान से

    लाठी, गोली, अश्रु गैस, जीना क्या आसान है?

    स्रोत :
    • पुस्तक : आठवें दशक के सशक्त जनवादी कवि और प्रतिबद्ध कविताएँ (पृष्ठ 81)
    • संपादक : स्वामी शरण स्वामी
    • रचनाकार : रमेश रंजक
    • प्रकाशन : जन साहित्य मंच
    • संस्करण : 1982

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