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जहाँ भी बचे है पेड़

jahan bhi bache hai peD

ओम नागर

ओम नागर

जहाँ भी बचे है पेड़

ओम नागर

और अधिकओम नागर

    जहाँ भी बचे हैं पेड़

    इस कांक्रीट के जंगल में

    वहाँ बचे हुए हैं मोर

    यह जो पतझर से झर गई है पेड़ों की पत्तियाँ

    वहाँ फुनगियों पर पत्तों की जगह उगे हैं पंछी

    जहाँ भी बचे हैं पेड़

    इस तारकोल की सड़क के इर्द-गिर्द

    वहाँ बची है अभी छाँव

    दुपहर में कोई राहगीर रुकता है दो घड़ी

    अपने सूखते कंठ में उतर जाती है पेड़ की शीतलता

    जहाँ भी बचे हैं पेड़

    इस दुनिया या शहर के किसी भी हिस्से में

    उन्हें बचे रहने दीजिए जस के तस

    वरना एक अदद आदमी बरगद नहीं होता

    वह कितनी ऑक्सीजन बना सकता है भला

    जहाँ भी बचे हैं पेड़

    वहाँ बचे रहेंगे नरम पाँखों वाले पंछियों के घोंसले

    इन दिनों पेड़ों के मोहल्ले में सुनाई देता है जो

    सख़्त चोंच वाले पंछियों का रुदन

    धरती के अस्थमा का पहला संकेत है

    जहाँ भी बचे हैं पेड़

    उन्हें बचाए रखिए जनाब

    पेड़ बचेंगे तो ही पीढ़ियाँ बचेंगी तुम्हारी-हमारी

    वरना ऐसे तो वह दिन दूर नहीं

    जब गुज़रोगे इस राह से कभी

    और कार का शीशा उतारते हुए कहोगे—

    देखो, बेटा यह जो आसमान को छूती इमारतें देखो

    कभी यहाँ कई एकड़ में फैली थी बड़ी-सी फैक्ट्री

    हज़ारों पेड़ थे

    मोर थे सैकड़ों की संख्या में

    चिड़ियाएँ इतनी

    कि उनकी चहचाहट सुनकर ही

    शहर बढ़ा लेता था अपनी उम्र

    पोता मुँह से मास्क हटाकर बोलेगा—

    पेड़ कितने ग्रीन होते है ग्रांड-पा,

    कल मैंने आर्ट बुक में पेड़ की पत्तियाँ ब्लू बना दीं

    तो मैडम ने लर्न कराया कि ब्लू नहीं ग्रीन होती हैं

    पेड़ों की पत्तियाँ

    और यह वृक्ष क्या होते हैं, पता नहीं

    और हाँ मोर वही पिकॉक वाला ग्रांड-पा

    कभी दिखाना मुझे भी

    मैंने तो कुछ नहीं देखा अभी

    पेड़

    मोर

    चिड़िया

    जंगल।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ओम नागर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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