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इतनी वाचालता का क्या करूँ कि

itni vachalata ka kya karun ki

यशस्वी पाठक

यशस्वी पाठक

इतनी वाचालता का क्या करूँ कि

यशस्वी पाठक

और अधिकयशस्वी पाठक

    इतनी वाचालता का क्या करूँ कि

    जाए स्वयं को प्रायोजित करना

    महामहिमों, धुरंधरों, श्री और जी के बीच

    स्थापित करना स्थापितों-प्रतिष्ठितों के बीच

    इतनी औसरवादिता का क्या करूँ कि

    लोटे की ढंगलियाहट और मेरी खिसियाहट में

    भेद हो जीव और निर्जीव का

    भेद हो हाड़-मांस, ताँबा-पीतल

    धातु और पाषाण का

    इतनी स्वार्थपरकता का क्या करूँ कि

    घर से निकलूँ शहर की रेल पकड़ने तो

    चौखट पर धरे

    जल-अक्षत-पुष्प भरे

    कलसे को देख

    भरे गला, रुँधे गला

    इतनी परिपक्वता का क्या करूँ कि

    संबंधों की चरमराहट

    टूटने-बिखरने की आहट

    उधड़े की सजावट और बनावट से

    फटे कलेजा, तन-मन गले अकेला

    ऐसी व्यवहार-कुशलता का क्या करूँ कि

    प्रोफ़ेसर के कप में जमी चाय की मलाई भी

    सूट, बेल्ट और टाई भी

    लगे शोध का विषय

    और विश्वविद्यालय के छज्जों में

    उल्टे लटकते चमगादड़ों पर जाए रश्क

    इतनी निर्भीकता का क्या करूँ कि

    चुगते खेत परिंद को

    ढेला मार उड़ा दूँ

    सोते बच्चे को जगा दूँ

    धुआँ कर दूँ कुनबा मधुमक्खी का

    दुखे दिल, दिल दुखाने से किसी का

    इतनी मनुष्यता का क्या करूँ कि

    पद, प्रतिष्ठा, संपत्ति, सफलता

    उदारवादिता, तार्किकता, आधुनिकता

    परिवार, सगे-संबंधी और मित्रता

    पीर-ओ-मुर्शिद, शाह-ओ-गदा

    जिधर जाए नज़र दिखे सबमें घुन

    करूँ क्या विवशता?

    क्या करूँ विकलता?

    स्रोत :
    • रचनाकार : यशस्वी पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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