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स्त्री प्रकृति होती है

istri prakrti hoti hai

नेहा अपराजिता

नेहा अपराजिता

स्त्री प्रकृति होती है

नेहा अपराजिता

और अधिकनेहा अपराजिता

    प्रेयसी प्रेम करते वक़्त हृदय की

    संपूर्ण भावनाओं को सौंप देती हैं अपने प्रेमी को

    ख़ुद को किसी को सौंपने से पूर्व

    वह नहीं सुनती अपने पूर्वाभास की

    प्रेम उसे अंधा नहीं, निर्णयहीन कर देता है

    उसके प्रेमी को प्रेम नहीं ख़ुद्दारी पसंद है

    प्रेम उसे ख़ुद्दारी सिखाता है

    ख़ुद की वास्तविकता बदल प्रेयसी ख़ुद्दार हो जाती है

    पहले प्रेमी की ख़ुद्दारी उसे मारती है

    उसके जाने के बाद,

    उसकी सिखाई हुई ख़ुद्दारी से वह ख़ुद को मारती है

    वह जो उसे अस्वीकार गया

    वह ही उसे ख़ुद को अस्वीकार करना सिखा गया

    अपने वास्तविक स्वरूप को त्याग देने के बाद

    अवास्तविक स्वरूप को ईश्वर नहीं स्वीकारता

    ईश्वर भी ख़ुद्दारी जानता है

    जो चीज़ जैसी बनाकर भेजता है

    वैसी ही वापस लेता है

    प्रेमी भगवान से भी ऊपर है

    प्रेयसी सृष्टि की सबसे नीच योनि से भी नीच

    उसने ईश्वर को साधे बिना ख़ुद को बदल डाला

    इस दुनिया और उस दुनिया के बीच ये प्रेयसियाँ

    बादलों के बीच ही रहती हैं

    इस प्रकृति की जितनी कोमलता है, सुंदरता है

    उस सुंदरता ने इन प्रेयसियों की आत्मा को

    अपने वजूद में सोख रखा है

    वे जिनके पुरुष नहीं होते हैं

    उनकी प्रकृति होती है

    या यूँ कहूँ

    वे ही प्रकृति होती हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नेहा अपराजिता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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