Font by Mehr Nastaliq Web

स्त्री कहाँ रहती है

istri kahan rahti hai

रश्मि भारद्वाज

रश्मि भारद्वाज

स्त्री कहाँ रहती है

रश्मि भारद्वाज

और अधिकरश्मि भारद्वाज

     

    अस्पर्श

    स्त्री अपनी योनि में रहती है
    यह नानी ने अपनी माँ से सुना था
    उन्होंने पहले माँ और फिर मुझे
    इतने कपड़ों में लपेटा
    कि धूप, हवा, बारिश सबसे अछूती रही वह
    मालिश के दौरान भी
    भले ही खुली रही देह
    योनि को ममता का स्पर्श नहीं मिला 

    संशय

    उसे सिखाया गया सलीक़े से चलना
    और पैरों को जोड़कर बैठना
    सड़कों पर चलते
    परत-दर-परत कपड़ों में लिपटी थी वह
    फिर भी उन्हें मिलती रहती
    उसकी आदिम गंध
    उनकी आँखों में कामना की नग्न भूख देखकर
    वह भूलती गई 
    कि उसका भी कुछ काम्य था  

    संसर्ग

    वह सोचती है
    कि जिस प्रथम पुरुष को उसने ख़ुद को सौंपा
    उसने उसका हृदय भी देखा कि नहीं
    या वह सिर्फ़ रही
    अक्षत, अविचल
    विजित की जाने वाली योनि मात्र 
    वह जो अंतिम पुरुष होगा
    क्या वह भी उतनी ही कामना से भरा होगा उसके वरण हेतु
    जब शुष्क हो जाएगी उसके भीतर की नदी 

    प्रतीक्षा

    बलात् प्रेम की दीर्घ यातनाओं के मध्य भी
    शेष रही उस स्पर्श की कामना
    जो उसे सदियों के अभिशाप से मुक्त करे
    जो उसे छूते हुए
    उसके हृदय की ग्रंथियाँ भी खोल सके
    जिसके प्रेम में तरल होते हुए
    उसे पाषाण में परिवर्तित कर दिए जाने का भय नहीं हो 

    सृष्टि

    प्रथम रक्तस्राव से
    शिशु जन्म के अपने उद्देश्य तक 
    सृष्टि का सारा भार वहन किया उसने
    फिर भी एक स्त्री के लिए वर्जित रहा यह शब्द
    उसे योनि को वहन करते हुए
    योनि की इच्छाओं से मुक्त रहना था 

    अभियोग

    उसे पत्थरों से पीटा गया
    ज़ंजीरों से जकड़ा गया
    अग्नि से जलाया गया
    सरियों से विक्षत किया गया
    उपभोग के बाद
    वह घृणा की पात्र थी
    स्त्री की मृत देह पर भी
    योनि को उसके होने की सज़ा दी गई

    वे डरते थे
    उसकी अविजित कामनाओं से
    उसके अँधेरे अगम्य अनंत से
    वह अग्निगर्भा, अनुसूया,
    असूर्यम्पश्या
    उनके लिए नरक का प्रवेश-द्वार थी
    जहाँ से निकलकर उन्होंने
    सृष्टि पर अपना अधिकार किया था  

    मुक्ति

    देवताओं ने कहा 
    आकार में वह किसी बीज-सी थी
    कांति में चंद्रमा-सी
    वह पूर्ण थी और पूर्णामृत भी 
    श्री, प्रीति, अंगदा, पुष्टि, तुष्टि यथा
    सभी सोलह कलाओं से युक्त 
    उसके अंदर बहती नदी से सिंचित थी धरा
    वह आकाशगंगा थी
    और वही पृथ्वी की रहस्य-गाथा 
    उससे मुक्ति में ही सिद्धि थी

    मानवी ने कहा
    शरीर के सभी अंगों की तरह
    एक अंग मात्र है वह
    उसका स्थान तय है और उसका कर्म भी
    न अतिशय आकर्षण
    न ही घोर विकर्षण की पात्र 
    हृदय, मस्तिष्क और आत्मा की तरह
    उसे भी स्वीकार किया जाए एक स्त्री के अंदर
    उसके साथ
    और उससे मुक्त होकर
    निर्बंध जीना है उसे
    एक मनुष्य की तरह

    स्रोत :
    • रचनाकार : रश्मि भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए