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इसी को कहते हैं प्रेम

isi ko kahte hain prem

परमानंद श्रीवास्तव

परमानंद श्रीवास्तव

इसी को कहते हैं प्रेम

परमानंद श्रीवास्तव

और अधिकपरमानंद श्रीवास्तव

    पूरे-पूरे 'हाँ' के लिए

    और पूरे-पूरे 'नहीं' के लिए

    जब वे बहुत ज़ोर दे रहे होंगे

    ठक-ठक बजती रात में

    जब वे दिखा रहे होंगे

    कोहरे में शव और

    चिथड़े में शब्द

    जब वे हँस रहे होंगे

    हिंस्र पशु की

    चीख़ जैसी बर्बर हँसी

    तुम मुझे बहुत-बहुत

    याद आओगी

    जो 'हाँ' और 'नहीं' से बचकर

    किसी सुनसान पहर में

    भाग निकली थीं मेरे साथ

    हठीले यक़ीन की तरह

    बिना जाने हुए

    कि इसी को कहते हैं प्रेम

    इसी को...

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौथा शब्द (पृष्ठ 9)
    • रचनाकार : परमानंद श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1993

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