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इस साल

is saal

राजदीप सिंह इंदा

और अधिकराजदीप सिंह इंदा

    फ़रवरी की धूप…

    अब तीखी होने लगी है

    श्वान करने लगे हैं

    पहला स्नान इस साल का

    इकट्ठा करने लगी हैं

    मधुमक्खियाँ भी मधु

    हर रोज़...

    इस बसंत के पहले फूलों से

    अपनी नई पीढ़ी की ख़ातिर,

    भँवरे भी करने लगे हैं

    अपना गला तृप्त।

    लिपटने लगे हैं फूलों के परागकण

    भँवरों, मधुमक्खियों और तितलियों के पैरों से

    मादाओं के साथ

    प्रजनन करने के लिए।

    सज गई है पूरी प्रकृति फिर से

    किसी नई दुल्हन की तरहाँ,

    अब गर्मी भी जाग गई होगी

    अपनी लंबी नींद से...

    धो लिया होगा अपना मुँह

    किसी झरने के ठंडे पानी से

    और कस रही होगी जीन जल्दी-जल्दी

    सूरज के घोड़ों पर सवार होने के लिए।

    हे मानव...तैयार हो जाओ तुम भी अब

    करने लग जाओ सेवा परहित के लिए

    सीख़ लो सद्कर्म प्रकृति से

    तुम भी अबकी बार,

    मत करना दग़ा और ना दुखाना दिल किसी का।

    सजा देना किसी के फूल से होंठो पर मुस्कान

    ना तोडऩा किसी के विश्वास का सुमन, कभी भी

    कर देना रोशनी किसी अँधेरे घर में प्रदीप से,

    और सजा देना किसी वीरानें में गुलशन...

    प्रकृति कि तरहाँ,

    तुम भी...इस साल।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजदीप सिंह इंदा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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