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इल्तिज़ा

iltiza

प्रतिभा कटियार

आओ सबसे पहले वार करो

मेरी रीढ़ पर

फिर निकाल लो मेरी आँखें

कोई काम नहीं इन्हें

बस कि ताकती रहती हैं

तुम्हारी राह

उँगलियाँ जो बेसाख़्ता लिखती रहती हैं

तुम्हारा नाम

उन्हें अलग कर दो काटकर

पाँव जो धूप देखते हैं छाँव

बढ़ते रहते हैं तुम्हारी ही ओर

इन्हें भी अलग किया जाना चाहिए

शरीर से काटकर

कान इन्हें भी कुछ सुनाई नहीं देता

सिवा तुम्हारे नाम के

इन्हें भी क्यों बख़्शा जाना चाहिए

ज़ुबान जो रटती रहती है

तुम्हारा ही नाम

उसे तो सबसे पहले

अलग किया जाना चाहिए

दिल जो धड़कता ही रहता है

तुम्हारे नाम पर

उस पर करना सबसे अंत में वार

कि साँस की आख़िरी बूँद तक

जानना चाहती हूँ

कितनी पीड़ा दे सकते हो तुम

प्रेम छिन्न-भिन्न करके

जब हो जाना थक के चूर

तब सुस्ता लेना थोड़ा

और मत बताना किसी को

कि तुम्हें मुझसे प्रेम था कभी

कि प्रेम के नाम पर पहले ही

कम नहीं हो रही है हिंसा

प्रेम के भीतर प्रेम को साँस लेने देना

उसे बख्श देना तुम

इतनी सी इल्तिज़ा है तुमसे।

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रतिभा कटियार
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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