इक्कीसवीं सदी का मानव
ikkiswin sadi ka manaw
उसे दंभ है अपनी सहन-शक्ति पर
कि वह झेल सकता है असंख्य पीड़ा
और निहार सकता है सहचरों के बदन से रिसता ख़ून
बिना व्यक्त किए हुए कोई भी प्रतिक्रिया
और रह सकता है बिल्कुल ही सहज
फिर दे सकता है वह वर्तमान के झूठ की गवाही
अतीत के ही किसी गुप्त दरवाज़े से
वह पड़ा रह सकता है बधिरों की तरह सुनते हुए
और भूल सकता है आँखों देखी घटनाएँ भी
वह कर सकता है प्रेम का भी विनिमय पैसों से
पाया गया है ऐसा विगत कुछ वर्षों में
कि गिरा है पैसा जब-जब मूल्य सूचकांक पर
साथ ही थोड़ा-थोड़ा वह भी गिरा है
गिरने से टूट गई है उसकी हिम्मत
बिखर गया है उसका स्वाभिमान
सिल गया है उसका विवेक
और क्षीण हुई कई अन्य क्षमताएँ भी।
- रचनाकार : सुलोचना
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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