इक्कीसवीं सदी का महान कवि
ikkiswin sadi ka mahan kawi
इतवार का दिन
और कवि को लिखनी थी कविताएँ
दस गिन
एक पत्रिका के
कविता विशेषांक के लिए
नाश्ते की मेज़ पर
टोस्ट बटर आमलेट खाकर
पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने पलटकर
कवि लिखने लगा कविताएँ—
कविता-एक, कविता-दो...
कविता-नौ, कविता-दस
कविताएँ
प्रयोगशाला में बनी
उस गैस की तरह थी
जो रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन थी
जो न ख़ुद जलती थी
और न ही किसी को जलाने में सहायक थी
कूट भाषा में लिखी कविताएँ
अत्यंत गूढ़ थीं
पढ़ने वाले के माथे के ऊपर से गुज़र जाती थीं
पर संपादकों आलोचकों को
कवि की ऐसी ही कविताएँ
बहुत पसंद थीं
कइयों ने कहा
कवि में मुक्तिबोध की आत्मा उतर आई है
कवि की कविताओं के कई-कई अर्थ तलाशे गए
भाष्य लिखे गए
पाठकों को समझाने के लिए
सभी ने मिलकर अंततः
कवि को 'महाकवि' घोषित कर दिया
इक्कीसवीं सदी का महान कवि
कविताएँ रच रहे हैं
पर पाठक तो
कुछ और ही देख पढ़ रहे हैं!
- रचनाकार : राज्यवर्द्धन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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