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इक्कीस की उम्र में

ikkis ki umr mein

राकेश कुमार मिश्र

राकेश कुमार मिश्र

इक्कीस की उम्र में

राकेश कुमार मिश्र

और अधिकराकेश कुमार मिश्र

    ख़ुद को टटोलते हुए

    विश्वास नहीं होता कि

    देह की भाषा अचानक बदल गई

    या धीरे-धीरे

    सपनों से लगातार ग़ायब होते जाते हैं

    सरसों के खेत, वीडियो, नाच और चित्रहार

    घिसे कपड़ों में

    बेहद शर्माती एक लड़की

    बिना खंभों वाले पुल पर मिलती है

    अक्सर सपने में

    इसी उम्र में।

    सपनों के परिवेश ही नहीं

    सपनों के स्रोत और रंग भी

    बदलने लगते हैं

    एक सामान्य सपना यह कि

    सजी-धजी लड़की बग़ल में खड़ी है

    और शोर के बीच फ़ोटो खींचा जा रहा है

    जबर्दस्ती हँसते-हँसते होंठ थक गए हैं।

    अब तक उदार राजा की भूमिका निभाने वाले पिता

    गिनने लगे हैं रोटियाँ

    माँ की ज़बान क़ैंची हो गई है

    बहन दिन में चुप रहती है

    और रात को ख़ाली कनस्तरों में बैठ रोती है।

    बड़का भाई की पी.एच.डी. इस जन्म में

    पूरी नहीं होने वाली

    छोटकी पढ़ने में तेज़ है, पर

    मुन्नी को ज़्यादा कहाँ तक ठीक होगा

    पिता इसी सोच में सने मिलते हैं

    बढ़ रही है उनकी चुप्पी।

    इसी उम्र में खोज शुरू होती है

    प्रेमिका की

    रोज़गार की

    रोज़गार सही

    बरोज़गारी को टालने के लिए एक मुकम्मल

    कारण की

    लेने होते हैं कुछ ज़रूरी फ़ैसले

    उस भविष्य के लिए जो वर्तमान पर

    हावी है।

    औरत की देह रहस्य बन

    सामने खड़ी हो जाती है

    शहर की सबसे बदनाम गलियों से

    गुज़रने का मन करता है

    इसी उम्र में।

    इक्कीस की उम्र में

    कविता नशे की तरह

    आपके साथ जुड़ जाती है

    प्रेमिका से ज़्यादा वफ़ादार लगते हुए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राकेश कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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