वो जिसके द्वारा निर्मित है ब्रह्मांड
wo jiske dvara nirmit hai brahmanD
वो जिसके द्वारा निर्मित है ब्रह्मांड
ये पृथ्वी,एक परिपूरित संसार जहाँ
मेरी उपस्थिति स्वयं मेरे लिए भी
अनधिकृत ही रही
उस ईश्वर को नहीं देखा जो
अवरूद्ध कंठो से पुकारे जाने पर भी
निर्विकार, निर्लिप्त रहकर
अलगाए रखता ख़ुद को
जबकि सुनती आई उसके अनन्य प्रेमियों से 'संभवामि युगे-युगे'
थोड़ा कम ही रहा अनुराग
निकट जाने की उत्कट चाहना भी
क्षीण होती गई...उपराग में डूबते हुए
कहने को तो असंख्य नाम से
पुकारे जाने वाले के प्रति
कृतज्ञता ज्ञापित करने को
सहस्र स्तुतियों के पाठ
हर होंठ भी बुदबुदाते
जिन्होंने दावे किए भयाक्राँत हो कि
हाँ मुझे प्रेम है उस ईश्वर से
तो भी मन उस आप्त पुरुष के प्रति
संशय से भरा सोचता रहा
प्रेम भी भला भय से होता!
इस तरह उसे पदच्युत करने से
तनिक भी नहीं झिझकी...
और गढ़ना चाहा स्वयं अपना देव
जिसके संमुख अनावृत कर सकूँ
अपना तन अपनी आत्मा स्वेच्छा से
जिसके दिपदिपाते नेत्र निहारते हुए
असीम सहानुभूति नहीं परोसे
ख़ालिस प्रेम टपकता हो
जिसके हिस्से चमत्कार कोई दर्ज़ नहीं
ना ही दंभ भरे निमिष में ही
हर पीड़ा को हँसी में बदलने का!
जिसका विस्तार दिग-दिगंत से अधिक
हृदय में देख सकूँ
इतना हो गझिन कि पढ़ सके मौन को
विरल इतना कि विसंगतियों को
आगे बढ़ दुलार सके
अलंघ्य दूरियों में रहते हुए भी आत्मा के जो सबसे निकट रहा उससे कह सकूँ कि
दुःख बाचने वाले व्यक्ति को पहले गले
लगाना आवश्यक है
सलाहियत बचा के रखना होता
उस देव में बस इतनी
मनुष्यता बची रहे
मेरी प्रार्थना है!
- रचनाकार : भावना झा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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