Font by Mehr Nastaliq Web

हँसेरीक हँस्सी

hanserik hanssi

बिभूति आनंद

अन्य

अन्य

बिभूति आनंद

हँसेरीक हँस्सी

बिभूति आनंद

और अधिकबिभूति आनंद

    अनेरे कहलक क्यो जे अपने एहि पार

    हम ओइ पार छियै गिरहस

    आमिल नञि पिबियौ हरसट्ठे

    तँ समयक अपन विचार छियै गिरहस

    हमरा आरक एँड़ीसँ चोटीधरि

    अपनेक छियै राजपाट

    फूसि कहलक क्यो, एखनो हमर सभक

    अपनहि सरदार छियै गिरहस

    अपनेक शासन तँ बलू

    सभदिन लग्गी सँ चलैत रहलै

    कनी अपन मड़ैयासँ बहरा देखियौ ने

    जे एन्नी की-की दरकार छियै गिरहस

    हमरा आर तँ मानैत रहली

    अपने नञि मानलियै

    आइ जँ लबका नञि मानैये

    तँ से ओकर बेबहार छियै गिरहस

    आइ जे अनिआयके ककहरा पढ़ै छै

    काल्हि पढ़तै गऽ शास्त्र

    दोख नञि देबै पाछू जखन बुझायत जे

    बलू, बिस्फोटक कते परकार छियै गिरहस

    अपने जुग जुग जिबिऔ

    मुदा अपने अरुदा सँ

    परंच कंस नञि बनियौ

    एम्हरो सभ अवतार छियै गिरहस

    हमरा आर तँ काल्हियो मानैत रही

    आइयो धरि कमी नञि केलिअइये

    मुदा अंतरी जे भऽ गेल छै देखार

    से आब लचार छियै गिरहस

    स्रोत :
    • पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 31)
    • रचनाकार : बिभूति आनन्द
    • प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
    • संस्करण : 1984

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY