अनेरे कहलक क्यो जे अपने एहि पार
आ हम ओइ पार छियै गिरहस
आमिल नञि पिबियौ हरसट्ठे
ई तँ समयक अपन विचार छियै गिरहस
हमरा आरक एँड़ीसँ चोटीधरि
अपनेक छियै राजपाट
फूसि कहलक क्यो, एखनो हमर सभक
अपनहि सरदार छियै गिरहस
अपनेक शासन तँ बलू
सभदिन लग्गी सँ चलैत रहलै
कनी अपन मड़ैयासँ बहरा देखियौ ने
जे एन्नी की-की दरकार छियै गिरहस
हमरा आर तँ मानैत रहली
अपने नञि मानलियै
आइ जँ लबका नञि मानैये
तँ से ओकर बेबहार छियै गिरहस
आइ जे अनिआयके ककहरा पढ़ै छै
काल्हि पढ़तै गऽ शास्त्र
दोख नञि देबै पाछू जखन बुझायत जे
बलू, बिस्फोटक कते परकार छियै गिरहस
अपने जुग जुग जिबिऔ
मुदा अपने अरुदा सँ
परंच कंस नञि बनियौ
एम्हरो सभ अवतार छियै गिरहस
हमरा आर तँ काल्हियो मानैत रही
आइयो धरि कमी नञि केलिअइये
मुदा ई अंतरी जे भऽ गेल छै देखार
से आब लचार छियै गिरहस
- पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 31)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
- संस्करण : 1984
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