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हवा के सर इल्ज़ाम है

hava ke sar ilzaam hai

अनुवाद : सुदर्शन शर्मा

वनिता

वनिता

हवा के सर इल्ज़ाम है

वनिता

और अधिकवनिता

    हवा के सर इल्ज़ाम है—

    हवा को टिककर बैठने की आदत नहीं है

    हवा के सर इल्ज़ाम है

    वह चढ़ते सूरज का ललाट चूमती है

    तपते सूरज में तप्त होती है

    ढलते सूरज में घुलमिल जाती है

    हवा के सर इल्जाम है—

    वह अमावस के चाँद का सत्कार करती है

    पूर्णिमा के चाँद को प्यार करती है

    यही नहीं बल्कि

    अर्धचंद्र की किनारी संग भी

    करती है अठखेलियाँ

    इतना ही नहीं कुछ और भी इल्ज़ाम हैं हवा के सर

    अपराधी है हवा

    वह सूरज-चाँद ही नहीं

    सितारों संग भी प्रफुल्लित होती रहती है

    सितारों संग खेलते हुए

    बनती है कभी आग़ोश उनके लिए

    और कभी ढाँप लेती है उनको अपने आलिंगन में

    रात को उनके अंक में खेलती है

    दिन में छुपा लेती है उन्हें अपने ही अंक में

    हवा के सर इल्ज़ाम यह भी है—

    हवा आग को छूती है और

    प्रज्वलित कर देती है उसे

    छुए जो वनतृणों को तो वे बतियाते हैं उसके संग

    हरी-हरी

    गुलाबी-गुलाबी

    जामुनी-जमुनी

    लाल-उनाबी बातें

    हवा को वे कहते हैं

    अक्खड़

    मैली

    बदचलन

    एक घर में नहीं बैठती टिक कर

    विचरती

    फूलती

    चढ़ती है

    श्वास-श्वास

    घर-घर

    गली-गली

    नगर-डगर

    अबुल-फ़ज़ल

    हवा के सर इल्ज़ाम यह भी

    वह भी

    और भी

    उनकी ओर से इल्ज़ाम है

    हवा के सर

    जो

    चाहते हैं हवा को

    मुट्ठियों में भींचना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : वनिता
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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