हाथ बढ़ाते ही स्वर्ग मिलेगा पता न था
hath baDhate hi swarg milega pata na tha
सीताकांत महापात्र
Sitakant Mahapatra
हाथ बढ़ाते ही स्वर्ग मिलेगा पता न था
hath baDhate hi swarg milega pata na tha
Sitakant Mahapatra
सीताकांत महापात्र
और अधिकसीताकांत महापात्र
1
पिता के स्वर में
ऊँ भू: भुव: सुनकर
एक बात मन में कर गई थी घर
भुलोक द्युलोक पार कर स्वर्ग लोक तक
पँहुचना बहुत ही दुष्कर
वहाँ पँहुचने को करने होते हैं बहुत कुछ
सत्य, धर्म, आचरण
अभ्यास, वैराग्य
ज्ञान, कर्म, भक्ति, अनासक्ति
गोमाता की सेवा से लेकर
दरवाज़े से भिखारी खाली हाथ नहीं लौटाने तक के
सारे अच्छे कर्म
2
रात में टिप-टिप मूसलाधार बारिश
छोड़ देती है
लॉन की घास पर तेज़ बौछारों के
कर्कश आघात के निशान
पूर्णतया स्पष्ट
अचानक दिखा मुझे भीगा कुंभाटुआ का एक नन्हा बच्चा
एक-एक क़दम चलता हुआ उस घास पर
मेरे प्रिय नागचंपा पेड़ की तरफ
कुंभाटुआ की लाल आँखें तक देखी थी मैंने
सारी रात गाँव में नौटंकी देखने में
उन लाल आँखों का अनुभव भी किया कभी मैंने
घने पेड़-पौधों के पीछे छिपकर
उसकी आवाज़ भी सुनी थी कभी मैंने
मगर इतने पास
बिल्कुल सुनसान में
मेघधुली स्वच्छ प्रभात में
कुंभाटुआ की बाल गोपाल
टुक-टुक चाल देखी न थी
मुझे बिल्कुल मालूम न था
हाथ बढ़ाते ही
छू लेंगे स्वर्गलोक।
- पुस्तक : ओडिया भाषा की प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 163)
- रचनाकार : सीताकांत महापात्र
- प्रकाशन : यश पब्लिकेशंस
- संस्करण : 2012
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