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‘हर की दून’ का कुत्ता

‘har ki doon’ ka kutta

प्रियंका दुबे

प्रियंका दुबे

‘हर की दून’ का कुत्ता

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    ‘हर की दून’ की बर्फ़ीली घाटी में
    रस्ता भटक गई हूँ।

    युधिष्ठिर की नैतिकता भले ही न हो साथ मेरे
    लेकिन शायद कभी यहीं से गुज़री
    पांडवों की अंतिम यात्रा की तरह ही
    आज भी एक कुत्ता ज़रूर
    मेरे आगे-आगे चल रहा है।

    तो क्या यह मेरी भी अंतिम यात्रा है?
    लेकिन पांडवों के उलट
    स्वर्ग की तो मुझे कभी आकांक्षा ही नहीं रही!

    और उस पर भी
    अगर द्रौपदी का अर्जुन से अतिरिक्त प्रेम पाप था
    तो यह पाप मैं कितनी ही बार कर चुकी हूँ!

    अपने सभी भले प्रेमियों को छोड़
    इक तुम्हें
    सबसे ज़्यादा प्यार करने का पाप!

    अगर प्रेम पाप है
    तो उनकी ही तरह
    सबसे पहले मर जाने को भी तैयार हूँ!

    लेकिन यह प्यारा पहाड़ी कुत्ता
    मुझे मर जाने भर की भी
    मोहलत नहीं देता।

    दिन भर लंबे ट्रैक के बाद अब यहाँ
    ‘स्वर्गारोहिणी’ पहाड़ के ठीक नीचे
    हमने अपना तंबू गाड़ लिया है।

    तुम्हें याद करते हुए
    हेड-लैंप की रौशनी में जब
    प्रेम-कविताएँ पढ़ती हूँ
    तब युधिष्ठिर का भेजा यह कुत्ता
    टुकुर-टुकुर देखता है मुझे

    ख़ामोश बर्फ़ और तारोंवाली
    ठिठुरती रात के इस एकांत में
    अपनी डूबी पनियल आँखों से
    भोर तक
    इस गहरी करुणा से
    देखता ही रहा है वह मुझे

    जैसे इसी घाटी में कभी
    द्रौपदी और उनके प्रेम के साथ हुए 
    अन्याय का
    प्रायश्चित कर रहा हो!

    जैसे आज युधिष्ठिर के इस कुत्ते ने भी
    अंततः मान ही लिया हो
    कि किसी भी मनुष्य की तरह
    प्रेम में डूबी स्त्री भी
    पतित नहीं
    सिर्फ़ प्रेमी होती है।
    ________________

    * ‘हर की दून’ की घाटी भारत के सबसे पुराने ट्रैकिंग-मार्गों में से है। कहा जाता है कि यह वही रास्ता है जिसे पांडवों से अपने अंतिम प्रस्थान के लिए चुना था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रियंका दुबे
    • प्रकाशन : समकालीन जनमत

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