हमारे सुनने का बुनियादी ऐब
hamare sunne ka buniyadi aib
हमारे सुनने का बुनियादी ऐब है
हम अक्सर ऊँचा सुनते हैं
नर्म मुलायम आवाज़ों को तवज्जोह नहीं देते
जीवन की कोमल तानों को अनसुना करते हैं
जब कि मानुष होने के लिए
उनका सुना जाना ज्य़ादा ज़रूरी है
सुनने की कोशिश में
हम नहीं सुनते मनुष्य की रुलाई
हम शब्दों की गूँज सुनते हैं या आक्रामक हँसी
भूतपूर्व सुनते हैं या फिर महान भविष्य में
हमारा सुनना समकाल में नहीं होता
(बावजूद तमाम उद्घोषणाओं के)
याद रखने की जुगत में हम भुलाने को सुनते हैं
ठोस सुनते हैं मगर आड़ा-तिरछा
सूधा नहीं सुनते सयानप और बाँकपने से रहित
चुप से बचकर सुनते हैं और एक चीख़
हमें खींच लेती है गुरुत्वाकर्षण की तरह
हमारे सुनने में देश है और दुनिया भी
लेकिन अपने ही मुहल्ले की आवाज़ नहीं है
हम हड़बड़ी में सुनते है या फिर सतर्क होकर
सहज मिली ख़ुशी की तरह नहीं सुनते
हमारे सुनने में शामिल हैं कुछ चुस्त जुमले
सीधी-सरल बातें हमें बोदी लगती हैं और दयनीय भी
एक कामयाब चालू आदमी को हम आदरपूर्वक सुनते हैं
एक असफल आदमी को सुनते हैं उपहास की तरह
सुनने के विमर्श को लेकर
हम कितना ही गंभीर होने का नाट्य करें
अपने तमाम संजीदापन के बावजूद
हम सुनते हैं मतलब की यारी की
जबरे की सुनते हैं या ज़रदारी की।
- रचनाकार : सवाई सिंह शेखावत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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