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गुलाब की आज़ादी

Gulab kii azadi

बच्चा लाल 'उन्मेष'

बच्चा लाल 'उन्मेष'

गुलाब की आज़ादी

बच्चा लाल 'उन्मेष'

और अधिकबच्चा लाल 'उन्मेष'

    उसे शुरू से ही किताबों के बीच जाना पसंद था

    मंदिरों की चौखट पर

    सिर पटक कर पवित्र होना नहीं

    गुलाब अब भी मित्र बनना पसंद करता है

    किसी राजा की ख़ातिर इत्र होना नहीं

    नकचढ़ा राजा दीवार उठाते-उठाते मर गया

    उसे मालूम होना चाहिए था

    कि इस ज़माने की हवाएँ

    उस गुलाब के साथ हैं

    हवाएँ हर दौर में थोड़ी बग़ावती रही हैं

    तानाशाहों की सेज पलटती रही हैं

    बोतलों में क़ैद इत्र की आज़ादी के लिए

    निरंतर काम करती रही हैं

    राजा की हड्डियाँ

    अब जैविक खाद में तब्दील हो चुकी हैं

    उसी के ऊपर उग आए हैं

    ढेर सारे गुलाब

    असल में राजा अब जाकर मरा

    इस बोझ से दबकर मरा

    इस क़लमी पौधे में उगीं

    गुलाब की कोमल पंखुड़ियों को छूकर मरा...

    स्रोत :
    • रचनाकार : बच्चा लाल 'उन्मेष'
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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