Font by Mehr Nastaliq Web

क्या पता किस बात का दुःख रहा

kya pata kis baat ka duःkh raha

नवीन सागर

नवीन सागर

क्या पता किस बात का दुःख रहा

नवीन सागर

जो नहीं हुआ

दुःख उसका नहीं

जो हुआ उसका दुःख है

उसका दुःख

घेरे है

जो हो रहा है उसके बाहर घेरे है

बहुत बड़ी दुनिया में

एक छोटा-सा कंकड़ हिलकर रह जाता है

जिसकी ओट में

बहुत बड़ा अपना जीवन गुज़रता है

जो बाक़ी रह गया वही सब कुछ

जो हुआ उसके बाहर हुआ

कौन मैं क्यों हो गया

कोई क्यों नहीं हुआ

मुझे क्यों पता है कि

वास्तविकता वास्तविक नहीं है!

कुछ नहीं हुआ

होने को रहा

क्या पता किस बात का दुःख रहा

डूबता हुआ कंकड़ हूँ

जो लहरें उठ रही हैं उनकी झलक में

मेरे जीवन की कथा है।

स्रोत :
  • पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 47)
  • रचनाकार : नवीन सागर
  • प्रकाशन : कवि प्रकाशन
  • संस्करण : 2001

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY