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ग्लोब

globe

जसबीर केसर

और अधिकजसबीर केसर

    बचपन में मुझे

    स्कूल के उस नीली आँखों वाले

    भूगोल मास्टर से

    बहुत भय लगता था

    जो एक ग्लोब दिखाता और कहता

    यही पूरी दुनिया है

    और पूरी शिद्दत के साथ

    देखने पर भी

    मुझे उस पूरी दुनिया में से अपना गाँव, अपना घर

    कहीं नहीं मिलता था

    मैं डर जाता था।

    मैं सोचता

    यह कैसी पूरी दुनिया है

    जिसमें मेरा घर नहीं मिलता

    और मुझे नीली आँखों वाला मास्टर

    एक जादूगर लगता था।

    भयभीत-सा घर जाकर

    जब माँ को ग्लोब से अपना घर

    ग़ायब होने की बात कहता

    तो वह बाँहों में भर लेती मुझे

    और कहती

    पगले हो तुम

    घर भी कहीं ग्लोब पर होते हैं

    गाँव में हुआ करते हैं घर।

    और तब मैं

    भूगोल, भूगोल मास्टर और ग्लोब

    सब भूल जाता।

    अब माँ नहीं रही

    लेकिन आजकल मुझे

    बचपन के उस डर ने

    फिर से घेर लिया है

    हर जगह एक ग्लोब

    मेरा पीछा करता रहता है।

    सुबह-सवेरे सैर के लिए

    निकलता हूँ

    तो वही ग्लोब

    फ़ुटबॉल-सा घूमता

    टकराता है मेरे पाँवों पर

    और मेरी गति उखड़ जाती है।

    फिर दिन-भर

    घूमते-टहलते

    दफ़्तर में सीट पर बैठे

    सहकर्मियों संग गपशप करते

    बाज़ार में ख़रीदारी करते

    मेरे आगे पीछे घूमता है ग्लोब

    और साथ ही

    भूगोल मास्टर का चेहरा भी

    और मुझे हर चीज़ का आकार

    गोल हो गया जान पड़ता है।

    शाम के समय

    घर पहुँचकर

    आराम करने के लिए

    चारपाई पर बैठने लगता हूँ

    तो मुझे वह

    फुटबॉल-सा उभरा

    नज़र आता है

    मैं डरने लगता हूँ

    और गिर जाने के भय से

    चारपाई से दूर हो जाता हूँ।

    पत्नी प्रेमपूर्वक, गर्मागर्म खाना

    थाली में परोसकर

    ला टिकाती है मेरे आगे

    फूली हुई रोटियाँ

    ग्लोब-सी जान पड़ती हैं

    निवाला बनाने और तोड़ने के लिए

    कोई सिरा हाथ नहीं लगता

    और मेरी भूख मर जाती है।

    मैं समझ नहीं पाता

    कि मेरे घर में

    यह ग्लोब क्या कर रहा है?

    ग्लोब, जिसके पीछे

    नीली आँखों वाले

    जादूगर भूगोल मास्टर का चेहरा

    चमकने लगता है।

    मैं डरता हूँ

    यदि मेरे घर को

    ग्लोब ने घेर लिया

    तो यह कहीं

    सचमुच लुप्त ही हो जाए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 576)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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