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आग की रेत पर तैरती नदी

aag ki ret par tairti nadi

भूपिंदर प्रीत

भूपिंदर प्रीत

आग की रेत पर तैरती नदी

भूपिंदर प्रीत

और अधिकभूपिंदर प्रीत

    उस लड़की के सिर पर

    सदैव तारों से जड़ा

    एक दुपट्टा होता था

    वह अपनी हथेली पर

    जलते दीए की उम्र मुझसे पूछती

    या अपनी पायलों की

    दीवानगी का सवाल करती

    मैं ख़ामोश रह जाता

    और समझ नहीं आता था

    कि मैं उसकी

    बेबाक बिखरती हँसी की

    तुलना कैसे करूँ

    कैसे कहूँ

    वह ख़ंजरों की नदी में उतर रही है

    कि वह

    सुलगते कोयले के पाँवों में

    पानी की पायल बाँध रही है

    मैं जानता हूँ

    उसके प्रेमी के माथे पर पहले से ही

    कुछ चिड़ियों की

    हत्या का आरोप था

    लड़की

    प्रेम

    और नर्क-वासना की

    काली दूरी से अपरिचित थी

    खीझकर मुझे कहा करती

    आदमी जब पाँवों में

    महिवाल की आग पहनकर लौटता है

    तो घर की दीवारों को

    आवारगी का संताप नहीं होता

    और जब औरत

    चूड़ियों में

    सोहणी की कशिश लेकर

    दहलीज़ पार करती है

    उस कोलाहल में

    गहरी नींद सो रहे दादा-परदादा की

    नींद भी क्यों उखड़ जाती है?

    सूर्य-सी दमकती कहती थी

    मैं तो अपने ख़ुदा जैसा इश्क़

    महावीर-सी नग्नता अपना सकती हूँ

    और मैं हैरान था कि

    उस मासूम ने

    नग्नता के अर्थ क्या निकाले हैं?

    जाने क्यों मुझे भय था कि

    उस लड़की के दुपट्टे वाले सितारे

    आकाश की जगह कहीं

    उसके प्रेमी के पाँवों की

    मिट्टी में मिल जाएँ

    लेकिन एक दिन वह

    चुपचाप चली गई

    और मेरे पास शेष

    उसकी ख़ामोशी

    रह गई

    फिर वे क़हर के दिन

    मेरी बगिया के सारे फूल काले पड़ गए

    जब मैंने देखा

    उस लड़की के सिर पर अब

    सितारों से नहीं

    घावों से जुड़ा दुपट्टा था

    वह मेरे पास आई

    और अपनी हथेली फैला दी

    उसकी हथेली पर जलता दीया

    उसी हथेली पर गिरा पड़ा था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 713)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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