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घासवाली

ghaswali

विद्यावती कोकिल

और अधिकविद्यावती कोकिल

    मौन क्यों हो घासवाली?

    निरखती क्या भवन ऊँचे; आँख घूँघट में चुराकर,

    ढूँढ़ती हो क्या किसी को इस गली में रोज़ आकर,

    यहीं रहती थीं कभी क्या बड़े घर-द्वारवाली?

    मौन क्यों हैं, स्वेद के कण व्यथा भीतर की बताकर,

    क्या संदेशा ला रहा है दूध आँचल में टपक कर,

    किसे रोता छोड़ आई हो बड़े परिवारवाली?

    हाथ में है ओज पलता पैर से उत्साह झरता,

    प्रकृति-सा सौंदर्य मुक्त समीर में जो श्वास भरता,

    लौट जाओ धूप से दायित्व के गुरु भारवाली।

    इधर बहती प्रति कणों से प्रेम लहरों की रुकी गति,

    चौंध जाती राजश्री है, सहम उठते उधर धनपति,

    देख कर दो निडर आँखें विश्व पर अधिकारवाली।

    रेशमी पट उठा यदि इन खिड़कियों के, देख सकतीं,

    तड़पती दो बूँद पानी में नयन की मीन मिलतीं।

    देख गर्वित गति सफल अहिवात के शृंगारवाली॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता सदी (पृष्ठ 230)
    • संपादक : सुरेश सलिल
    • रचनाकार : विद्यावती 'कोकिल'
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2018

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